इन दिनों इंटरनेट पर एक दुख भरा ओडिया गाना “छी. छी..छी.. रे नोनी छी!” तरंगायित अर्थात् वायरल हो रहा है। कुछ दिनों पहले तक “आज की रात मजा हुस्न का आंखों से लीजिए” देखकर निहाल होने वाले लोग इस करुण गीत पर हंसते नहीं थक रहे हैं। कारण इस गाने के बोल और स्थानीय कलाकारों के हावभाव से कहीं अधिक अपनी प्रादेशिक भाषाओं को लेकर उपहास की हमारी मानसिकता भी है। अस्तु, यह गीत जिस प्रकार की न्यायसंगत प्रतिक्रिया का हकदार है उसे पाने के लिए इसका अर्थ समझना आवश्यक है।
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तीस वर्ष पूर्व सत्यनारायण अधिकारी के गाये इस गीत में अपनी प्रेमिका से बिछुड़े निर्धन प्रेमी का आक्रोश और तिरस्कार मुखरित हुआ है। इसकी भाषा कोरापुटिया है जो ओडिशा के कोरापुट जिले में बोली जाती है। इसे देसिया या दक्षिणपश्चिमी ओडिया भी कहा जाता है।
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छी छी छी रे नोनी छी
छी छी छी रे नोनी छी रे छी रे छी
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छि नोनी तुम्हें धिक्कार है!
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सरते दिनर सान हेबा काजे फाजल नेई रेलु
सरते दिनर सांग हेबा काजे गाजल नेई रेलु
बोंजारुणि मार पाखे जाइ नियम कोरि रेलु
गोलागोला जाका तोर हेलि बोली केते कथा कोइ रेलु
मुइ गां जाइ करि असला बेले केन्ता पसरि देलु रे नोनी छि छि छि
छि छि छि रे नोनी छि
छि छि छिरे नोनी छिरे छिरे छि
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मैंने प्रतिदिन छोटी छोटी खुशियां देने की कोशिश की
मैंने प्रतिदिन आनंद और मनोरंजन जुटाया
मैंने तुम्हारी मां को भी वचन दिया
मैंने उसे कई बार बताया कि तुम मेरे लिए क्या हो
जब मैं अपने गांव से लौटा तो तुम सब कुछ कैसे भूल गई
छि तुम्हें धिक्कार है नोनी
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धनके देखलु तुई नोनी सिना मनके चिनलु नाइ
सुनाके चिनलु बनाके चिनलु मनुष चिनलु नाइ
धन नाइ बोली मोर पाके नोनी तार काजे उठिगल
धन आछे सिना मन नाइं ताके तुई जानी न परिल
गोटे दिन मिसा जोगिदेलु नाइ केडे़ कथा कोरिदेलु
मुइ गां जाइ करि असला बेले केन्ता पसरि देलु रे नोनी छि छि छि
छि छि छि रे नोनी छि
छि छि छि रे नोनी छि रे छि रे छि
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तुमने सिर्फ पैसा देखा पर मेरे प्यार की कीमत नहीं समझी
तुमने सोने और कीमती गहनों को महत्व दिया किन्तु एक सच्चे इंसान की कद्र नहीं की
तुमने मुझे छोड़ दिया क्योंकि मैं अमीर नहीं था
तुम्हें समझ नहीं आया कि पैसेवालों के पास दिल नहीं होता
तुम हमारी सारी पिछली बातों को भुला दिया
छि तुम्हें धिक्कार है नोनी
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तोर कथा धरि रुन बाडी धरी सबु कथा करिथिली
माली मुदी गुणा पाँएरी पान्जल सबु किनि देई रेली
तोर कथा धरि रुन बाडी धरी सबु कथा करिरेली
माली मुदी गुणा पाँएरी पान्जल सबु किचि देई तिली
तोते श्रद्धा बोली रंग फटाए कानी संगे देई रेलि घरे
भोजि भात लागी छेली मेंढा किनी रखिदेलि आमर घरे
नसाई देलु ननी सबु आसा मोरा कांइ दुख तूई देलु
मुइ गां जाइ करि असला बेले केन्ता पसरि देलु रे नोनी छि छि छि
छि छि छि रे नोनी छि
छि छि छि रे नानी छि रे छि रे छि
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मैंने तुम्हें दिया वचन निभाया और जो तुमने कहा वह किया
मैं तुम्हारे लिए सब तरह के गहने उपहार में लाया
मैं अपने प्यार की निशानी के तौर पर रंगीन धागे लाया
मैंने अपने घर पर रस्म निभाने के लिए एक बकरी भी खरीदी
तुमने मेरी सभी उम्मीदें तोड़ दीं, नोनी तुमने मुझे यह दर्द क्यों दिया
मैं गांव लौटा और देखा कि कैसे तुमने सब कुछ भुला दिया
छि तुम्हें धिक्कार है नोनी
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छी छी छी पर ही ही ही करने वालों में मलयाली भी पीछे नहीं हैं। मलयालम में पालक को “चीरा” (ചീര) कहते हैं। ध्वनि साम्य के कारण उन्हें “छि रे नोनी” “चीरा नुल्ली (ചീര നുള്ളി)” जैसा सुनाई दे रहा है और इससे उन्हें इस गाने पर हंसने की एक नई वजह मिल गई है। वे आपस में विनोद कर रहे हैं कि बेचारा नायक पालक न मिलने की वजह से इतना दुखी है। कुछ दिलचस्प टिप्पणियों पर नजर डालते हैं:
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1. ആരടാ ചീര നുള്ളി എടുത്ത മഹപാപി
(आरडा चीरा नुल्ली महापापी)
पालक की चुटकी लेने वाला महापापी कौन है रे
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2. ഒരു കിലോ ചീര വേണേൽ ഞാൻ കൊണ്ട് തരാം ഇനി കരയല്ലേ, കണ്ടിട്ട് സഹിക്കാൻ പറ്റണില്ല
(ओरु किलो चीरा वेणेल ञान कोण्ड तराम् इनि करयल्ले, कण्डिट्ट सहिक्यान पेट्टिल्ल।)
यदि तुम्हें एक किलो पालक चाहिए तो मैं ला दूंगा, अब मत रोओ, देख कर रहा नहीं जाता।
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3. പിന്നെ നാട്ടുവളർത്തിയ ചീര ചീഞ്ഞു പോയാൽ ആർക്കായാലും സങ്കടം വരും
(पिन्ने नाट्टुवलर्तिय चीरा चीञ्ञु पोयाल आरक्कायालुम् संकटम् वरुम्)
. अब देसी पालक सड़ेगा तो कोई भी दुखी होगा।
4. ഉണക്കമീൻ കറിയിൽ ചീര ഇട്ടതിനെക്കുറിച്ചുള്ള മാനസിക സംഘർഷമാണ് ഈ സീനിൽ കാണുന്നത്.. ഈ പുഴ സൂചിപ്പിക്കുന്നത്
കറി വെച്ച ഉണക്ക മീൻ ആ പുഴയിൽ നിന്നും പിടിച്ചതായിരുന്നു!.
(उनाक्कमीन करियिल चीरा इट्टत्तिनेक्कुरिचुल्ल मानसिक संघर्षमाण ई सीनिल काणुन्नद.. ई पुड़ा सूचिप्पिककुन्नद करी वेच्च उनक्क मीन आ पुड़यिल निन्नुम् पिडिच्चतायिरुन्नु!)
इस दृश्य में हम सूखी मछली के झोल में पालक मिलाने की उधेड़बुन देखते हैं। यह नदी दिखाती है कि झोल की सूखी मछली यहीं से पकड़ी गई थी।
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5. അവനു ചീര കിട്ടിയില്ലഎന്ന്
(अवनु चीरा किट्टियिल्ल एन्न)
उसे पालक जो नहीं मिला
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6. ഇവിടെ ഇവരെ കളിയാക്കുന്നവർ ചീര കൂട്ടി ചോറ് തിന്നാൻ കഴിയാത്ത ഇവരുടെ അവസ്ഥ മനസ്സിലാക്കാൻ കഴിയാത്തവരാണ്
(इविडे़ इवरे कलियाक्कुन्नवर चीरा कुट्टी चोर तिन्नान कलियाद इवरुडे़ अवस्था मनसिलाक्कान कलियादवराण)
इनका उपहास करने वाले वे लोग हैं जो पालक के साथ चावल न खा सकने पर इनकी दशा नहीं समझते हैं।
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7. ഈ പാട്ടിന്റെ അർത്ഥം മനസ്സിലാകാതെ എങ്ങനെയാണ് കണ്ണിൽ നിന്നും കണ്ണുനീര് വരിക ചീര നുണച്ചി അത്രമാത്രം മനസ്സിലായി
(ई पाट्टिन्टे अर्थम् मनस्सिलाकाते एंगनेयाण कण्णिल निन्नुम कण्णनीर वरिका चीरा नुणची अत्रमात्रम् मनस्सिलायि।)
इस गाने का अर्थ समझे बिना ही मेरी आंखों से आंसू आ गये। पालक झूठा इतना ही समझ आया।
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8. ഊണിനു ഉണക്ക മീൻ ചോദിച്ചപ്പോ ചീഞ്ഞ ചീരനുള്ളി കൊടുത്തല്ലേ നീ
(ऊणीनु उणक्क मीन चोदिच्चप्पो चीञ्ञ चीरनुल्ली कोडुतल्ले नी)
जब मैंने रात के खाने में मछली मांगी तो तुमने मुझे सड़ियल पालक दिया।
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9. അത് ആ ഭാഷയിൽ “മാനസ മൈനേ വരു “എന്നാണ് പിന്നെ ഏതോ മൊണ്ണയുടെ കാര്യം പറയുന്നുണ്ട് അത് കാര്യമായി എടുക്കണ്ട
(अद आ भाषायिल “मानस मैने वरु” एन्नाण पिन्ने एदो मोण्णयुडे कार्यम परयुन्नुण्ड अत कार्यमायी एडुक्कण्डा)
वह उस भाषा में “मानस मैने वरु” है जो किसी बच्चे की बात कही है। उसे गंभीरता से मत लो।
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यह भले ही सोशल मीडिया का हास परिहास हो किंतु वास्तव में केरला ओडिया लोगों या उनकी भाषा से बिलकुल अनजान हो ऐसा नहीं है। केरला के प्रवासी श्रमिक, जिन्हें शासकीय भाषा में स्नेहपूर्वक “अतिथि तोड़लाली” कहते हैं, उनमें ओडिया लोगों का बाहुल्य होता है। हाल ही में कोच्ची के एक निजी विद्यालय सेन्ट जॉसेफ अप्पर प्राइमरी स्कूल, कडवन्तरा ने सप्ताहांत में ओडिया सिखाने की पहल की है। इसका प्रकट उद्देश्य प्रवासी ओडिया श्रमिकों के बच्चों को उनकी मातृभाषा सिखाना है। हालांकि प्रच्छन्न उद्देश्य (धर्म परिवर्तन ?) को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इससे पहले 2016 में केरला में शासकीय तौर पर प्रवासी श्रमिकों को मलयालम सिखाने के लिए चंगत्ति कार्यक्रम प्रारंभ किया जा चुका है। निहित स्वार्थ को अनदेखा कर दें तो भाषाई अनुकूलन के यह दोनों प्रयास सराहनीय हैं।
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