थलाइवी: अंग्रेज़ी की ताल पर ह‍िन्‍दी की ता ता थैया

Ajay Singh Rawat/ March 28, 2021
Thalaivi

तम‍िळनाड की मुख्‍यमंत्री जयलल‍िता की जीवनी पर आधार‍ित कंगना रणौत के बहुप्रतीक्ष‍ित और बहुभाषी चलच‍ित्र का व‍िज्ञापन जारी हो चुका है और पर्याप्‍त प्रशंसा भी बटोर रहा है। जयलल‍िता को अभ‍िनेत्री और नेत्री दोनों के रूप में तम‍िळनाड के लोगों का भरपूर प्‍यार म‍िला। कंगना का व्‍यक्‍त‍ित्‍व भी जयलल‍िता से मेल खाता सा लगता है। उन्‍होंने राजनीत‍ि में तो सीधे तौर पर अभी तक प्रवेश नहीं क‍िया है क‍िंतु उनके आक्रोशपूर्ण वक्‍तव्‍यों से उनका राजनैत‍िक झुकाव स्‍पष्‍ट हो चुका है। अस्‍तु, इस चलच‍ित्र का नाम है “तलैवी” जो क‍ि एक तम‍िळ शब्‍द (தலைவி) है ज‍िसका अर्थ होता है नेत्री या मह‍िला मुखिया।
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जयलल‍िता के ल‍िए तलैवी संबोधन उनकी लोकप्र‍ियता का द्योतक है और उन पर बने चलच‍ित्र का उपयुक्‍त शीर्षक भी। अंग्रेज‍ी में हाऊसवाइफ के ल‍िए तम‍िळ शब्‍द है कुटुम्‍बतलैवी। इसका ह‍िन्‍दी या संस्‍कृत पर्याय “गृहनेत्री” बनाया जा सकता है जो प्रचल‍ित शब्‍द गृह‍िणी से अध‍िक सशक्‍त प्रतीत होता है। पुरूष नेता या मुखिया को तम‍िळ में तलैवर(தலைவர்) अथवा तलैवन (தலைவன்) कहते हैं। सामान्‍य बोलचाल में यह तलैवा (தலைவா) या तालै (தலை) हो जाता है। तम‍िळ अभ‍िनेताओं रजनीकांत, अज‍ित, व‍िजय आद‍ि को उनके रस‍िक (प्रशंसक) आदरपूर्ण स्‍नेह से तलैवा, तालै अथवा तलपत‍ि (दलपत‍ि) कहकर बुलाते हैं।
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तम‍िळ और ह‍िन्‍दी दोनों ही भारतीय भाषाएं हैं। ह‍िन्‍दी भारतीय आर्य भाषा है और तम‍िळ संस्‍कृत के समतुल्‍य क‍िंतु ह‍िन्‍दी से कहीं प्राचीन एक द्रव‍िड़ भाषा है। ह‍िन्‍दी को जहां राष्‍ट्रीय भाषा बनाने और साब‍ित करने की पुरज़ोर कोश‍िशें की जाती रही है वहीं तम‍िळनाड में इसका पुरज़ोर व‍िरोध होता रहा है। एक ही पुल पर व‍िपरीत द‍िशाओं से आती हुई दो बकर‍ियों ने जैसे एक दूसरे को रास्‍ता द‍िया वैसी समझ लोगों को कभी नहीं आयी या कहें क‍ि राजनीत‍ि के न‍िह‍ित स्‍वार्थ ने उसे व‍िकसि‍त ही नहीं होने द‍िया।

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बहरहाल इस लेख का उद्देश्‍य तलैवी के बहाने ह‍िन्‍दी और तम‍िळ की भाषायी भ्रांत‍ि दूर करना हैं ज‍िसे मैं आवश्‍यक समझता हूं। क‍िसी भाषा के सही उच्‍चारण को जाने ब‍िना उसके सौंदर्य से अवगत होना कठ‍िन है। ह‍िन्‍दी और तम‍िळ के बीच का एक अंतर यह भी है क‍ि तम‍िळ भाषा में स‍िर्फ त (த) वर्ण होता है जबक‍ि ह‍िन्‍दी में त के अत‍िर‍िक्‍त थ,द,ध भी होते हैं। “तलैवी” को सभी ह‍िन्‍दी समाचार माध्‍यमों (आज तक, इंड‍िया टुडे, अमर उजाला, ज़ी न्‍यूज़ आद‍ि) में “थलाइवी” कहकर ही प्रचार‍ित क‍िया जा रहा है। यह व‍िश्‍वास करना कठ‍िन है क‍ि क‍िसी भी राष्‍ट्रीय समाचार अभ‍िकरण में एक भी व्‍यक्‍त‍ि तम‍िल या दूसरी दक्ष‍िण भारतीय भाषाओं को जानने वाला नहीं है जो इस तरह के उच्‍चारण संबधी दोष की ओर उनका ध्‍यान खींच सके। यह भी दुर्भाग्‍यपूर्ण है क‍ि फ‍िल्‍म के न‍िर्माता, प्रचारकों और कलाकारों को भी इससे कोई लेना-देना नहीं है जबक‍ि “तलैवी” की अपेक्षा “थलाइवी” सुनने में हास्‍यास्‍पद भी लगता है। यह व‍िषम उच्‍चारण अंग्रेज़ी वर्तनी Thalaivi और तम‍िल के प्रत‍ि हमारी उदासीनता की देन है। य‍हां उच्‍चारण का दोष “त” को “थ” समझने तक ही सीम‍ित नहीं है अप‍ितु “एै” की मात्रा को “आई” समझने में भी है।

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क्‍योंक‍ि तम‍िळ में थ,द,ध नहीं होते इसल‍िए वहां ट के ल‍िए अंग्रेज़ी में t और त के ल‍िए th का प्रयोग क‍िया जाता है। जबक‍ि ह‍िन्‍दी में ट और त के ल‍िए t और थ के ल‍िए th का प्रयोग होता है। दो झगड़ालू ब‍िल्‍लियों‍ के ल‍िए न्‍यायाधीश बने बंदर जैसी अंग्रेजी भी कम लाचार नहीं है। अपनी वर्णमाला से अपना काम चलाना प्रत्‍येक भाषा की व‍िशेषता होती है क‍िंतु एक ही देश की दो भाषाओं क‍ी मध्‍यस्‍थता करने में एक वि‍देशी भाषा अंग्रेज़ी क‍ितनी सार्थक हो सकती है यह व‍िचारणीय है।

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त, थ, द को लेकर अंग्रेज़ी़ की अपनी सीमाएं हैं। अंग्रेजी के पास स‍िर्फ ट t और ड d ही हैं। अंग्रेज़ी में th का उच्‍चारण अध‍िकांशत: थ या द ही ल‍िया जाता है जैसे क‍ि डैथ, हैल्‍थ, वैल्‍थ, बाथ, यहां तक क‍ि नॉर्थ और साऊथ भी। Th के ल‍िए द के उच्‍चारण के सामान्‍य उदाहरण हैं द, दैन, दैट, द‍िस, देअर, आदि।
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तम‍िळ में प्रयुक्‍त संस्‍कृत शब्‍द इस भाषायी भ्रम का श‍िकार नहीं बन पाते क्‍योंक‍ि ह‍िन्‍दी वाले और उत्‍तरभारतीय अंग्रेज़ी वाले भी उनसे सुपर‍िच‍ित होते हैं और उनके उच्‍चारण के ल‍िए वे अंग्रेज़ी पर न‍िर्भर नहीं होते । नहीं तो Rajinikanth (இரசினிகாந்து), Ajith (அஜித்) और Jayalalitha (ஜெயலலிதா) को भी उनकी अंग्रेज़ी वर्तनी के आधार पर रजनीकांथ, अज‍ि‍थ और जयालल‍िथा ल‍िखे जाने की पूरी संभावना बनती है। तम‍िळ के लोकप्र‍िय अभ‍िनेता धनुष को भी तम‍िळ में தனுஷ் ही ल‍िखा जाता है क‍िंतु अंग्रेजी में इसे Dhanush ही ल‍िखते हैं Thanush नहीं जैसा क‍ि तम‍िळ वर्तनी के अनुसार होना चाह‍िए। कुछ समय पहले एक व‍िवाद से चर्चा में आए सुप्रस‍िद्ध तम‍िळ गीतकार वैरमुतु के नाम को भी प्रचार माध्‍यमों में अलग अलग तरह से उच्‍चार‍ित क‍िया गया।
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तम‍िळ जैसी स्‍थ‍ित‍ि का सामना मलयालम को भी करना पड़ता है जबक‍ि मलयालम में त को ത और थ को ഥ से व्‍यक्‍त क‍िया जाता है। शश‍ि तरूर को भी उनके उपनाम की मलयालम वर्तनी (തരൂർ) के स्‍थान पर अंग्रेज़ी वर्तनी (Tharoor) के आधार पर शश‍ि थरूर ही ल‍िखा जाता है। राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार प्राप्‍त मलयालम चलच‍ित्र “तोण्‍डीमुत्‍तालुम दृक्‍साक्ष्‍यम्” (തൊണ്ടിമുതലും ദൃക്സാക്ഷിയും) Thondimuthalum Driksakshiyum का उच्‍चारण भी इसी भ्रम के कारण और भी क्‍ल‍िष्‍ट हो जाता है।

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उच्‍चारण संबधी यह दोष एकतरफा नहीं हैं। तम‍िळ फ‍िल्‍म “इन्‍ड्र पोइ नालै वा” का संवाद “एक गांव में एक क‍िसान रघुताता (रहता था)” तो प्रस‍िद्ध है ही। तम‍िळनाड में भी बहुत से लोग मोदी को मोडी, राहुल गांधी को राघुल गांधी, खादी को गादी, (खाने वाली) चाट को चैट कहते हैं क्‍यों‍कि‍ ह‍िन्‍दी न जानने के कारण वे भी अंग्रेजी वर्तनी से ही उच्‍चारण न‍िर्धार‍ित करते हैं।
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राष्‍ट्रभक्‍त‍ि अपने देश की भाषायी व‍िव‍िधता का सम्‍मान करने में भी है। क‍ितना अच्‍छा हो क‍ि ज‍ितनी सतर्कता ह‍िन्‍दी में अंग्रेज़ी शब्‍दों के सही उच्‍चारण को लेकर बरती जाती है वैसी ही क्षेत्रीय भाषा के शब्‍दों के ल‍ेकर भी बरती जावे।

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