तमिळनाड का शास्त्रीय नृत्य भरतनाट्यम विश्वप्रसिद्ध है। इस नृत्य को सीखना एक साधना है जो सबके बस की बात नहीं है। किंतु अपनी खुशी प्रकट करने के लिए नृत्य करना और दूसरों की खुशियों को बांटने के लिए उनके नृत्य में शामिल होने का चलन विश्व में सर्वत्र है। तमिळनाड में भी दप्पानकुत्त ऐसा ही एक नृत्य है जिसकी सरलता और ऊर्जाभरी मस्ती और धमक नाचने में संकोच करने वालों को भी बरबस नचवा देती है। तमिळ चलचित्रों में यह नृत्य बहुधा दिखाया जाता है किंतु गैरतमिळ नहीं जानते होंगे कि इसका अपना नाम और कुछ विशिष्टताएं भी हैं जो खासी दिलचस्प हैं।
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हम बात कर रहे हैं दप्पानकुत्त की जो कि तमिळनाड का एक अनौपचारिक नृत्य है। “दप्पा” का अर्थ तमिळ में उस वाद्य से है जो इस नृत्य के दौरान बजाया जाता है और “कुत्त” का अर्थ है नृत्य। तो यह बात तय है कि दप्पानकुत्त में ढ़ोल तो बजेगा ही बजेगा। दप्पानकुत्त के लिए अधिकतर तारै तपट्टै नामक तालवाद्य का प्रयोग होता है जो कि एक लकड़ी से बजाया जाता है। इसमें उरुमि मेलम वाद्य का प्रयोग भी होता है। उरुमि मेलम से पांच तरह की ध्वनियां उत्पन्न की जा सकती हैं। इनमें से एक गहरी कराहने जैसी ध्वनि भी होती है जो कई तमिळ चलचित्रों के पार्श्वसंगीत में भी प्रयुक्त होती है। इसे वाद्य के दाहिने सिरे पर छड़ी के प्रहार के साथ ही बांये सिरे पर छड़ी की रगड़ से उत्पन्न किया जाता है। दप्पानकुत्त में कभी कभी नादस्वरम का प्रयोग भी किया जाता है। संगीत की परतें जिस तरह एक दूसरे में समाहित होती हैं वही दप्पानकुत्त की ताल की विशेषता भी है।
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दप्पानकुत्त की वेशभूषा भी कम रुचिकर नहीं है। नर्तक बहुधा लुंगी पहने होता है। लुंगी के नीचे होता है धारीदार लट्ठे का कच्छा या अधोवस्त्र जिसे तमिळ में पट्टापट्टी कहते है। पट्टापट्टी का कम से कम एक इंच भाग लुंगी से बाहर दिखना चाहिए या कहें कि पट्टापट्टी पहना है यह दिखना भर चाहिए। तमिळ सिनेमा में ग्रामीण चरित्रों को बहुधा पट्टापट्टी पहने दिखाया जाता है। लड़ाई के दृश्यों में जब धोती या लुंगी को ऊपर समेटा जाता है तो पट्टापट्टी के दर्शन भी हो जाते हैं। तमिळ भाषा में किसी व्यक्ति की खासियत जो उसे दूसरों से अलग करके उसकी शान बढ़ा देती है उसे तनि गेत्त कहते हैं। कई अभिनेताओं का पट्टापट्टी प्रेम उनका तनि गेत्त भी बन गया। रामराजन्, नेपोलियन, राजकिरण, वडिवेल आदि ने पट्टापट्टी को खूब लोकप्रियता दिलाई। राजकिरण और नेपोलियन के चलचित्र में काम करने की एक शर्त यह भी होती है कि पूरी फिल्म में वे पट्टापट्टी के साथ वेष्टि या लुंगी पहनेंगे। रामराजन् ने “एंग ऊर पाट्टकारन” नामक पूरे चलचित्र में पट्टापट्टी ही पहना है। इस चलचित्र के बाद से उन्हें “ट्राउसर पांडी” नाम से भी बुलाया जाने लगा। अब नीचे से ऊपर की ओर बढ़ते हैं। नर्तक ऊपर एक भड़कीली कमीज या जुब्बा अर्थात् कुर्ता पहने होता है। कुर्ता बिना किसी डिजाईन का होता है। नर्तक के गले या माथे या कलाई में एक एक बड़ा रूमाल बंधा होता है।
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दप्पानकुत्त करने के कोई कठोर नियम नहीं है। यह उन्मुक्त शैली का नृत्य है। इसे आप अपनी रुचि के अनुरूप ढाल सकते हैं। नृत्य के समय नर्तक सीने को बाहर तान कर एक हाथ सिर के पीछे रखता है। उसके शरीर का ऊपरी हिस्सा और बाँहे उसके घुटनों और पैरों के विपरीत फड़कती हैं। वह जीभ को मुंह में समेट लेता है और निचले होठ अर्थात् अधर को जोर से काटता है। सबसे आवश्यक है कि नर्तक संकोच त्याग कर नाचे। इसलिए मदिरा का उन्माद इस नृत्य की थिरकन को बढ़ा देता है। दर्शक तालियां और सीटी बजाते हैं और पटास (पटाखे) फोड़ते हैं। अपनी सरलता में भी यह नृत्य कितना मोहक हो सकता है इसका अच्छा उदाहरण धनुष के चलचित्र आडकलाम का गीत ओत्त सोल्लाल है जिसके लिए नृत्यनिर्देशक दिनेश कुमार को राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।
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https://www.youtube.com/watch?v=vXLAIaSkFIQ
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तमिळ संगीत में सहस्रों दप्पानकुत्त गीत हैं। वे सब के सब ताल की एक शैली पर आधारित होते हैं जिसे कोट्ट कहते हैं। कोट्ट का अर्थ तमिळ में ताल होता है। दप्पानकुत्त संगीत का एक उपवर्ग भी होता है जिसे सावकुत्त या सावकोट्ट कहते हैं। यह शवयात्रा के दौरान बजाया जाता है यद्यपि इसका चलन सभी समुदायों में नहीं है। विजय सेतुपति के चलचित्र धर्मदुरै का गीत मक्क कलंगदप्पा एक ऐसा ही गीत है जिसे अपार लोकप्रियता मिली।
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दप्पानकुत्त के कुछ और प्रकार हैं जैसे:
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हरि दप्पानकुत्त
दौलत दप्पानकुत्त
गून दप्पानकुत्त
बिजिल दप्पानकुत्त
तिगिल दप्पानकुत्त
सोरगु दप्पानकुत्त
टाइगर दप्पानकुत्त
तीकुचि दप्पानकुत्त
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लोकप्रिय तमिळ अभिनेता विजय के चलचित्र मास्टर का गाना वाती कमिंग दप्पानकुत्त एक अच्छा उदाहरण है।
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