अनुवादक की दुव‍िधा:घरवाली या बाहरवाली

Ajay Singh Rawat/ September 26, 2021

Pebbles of mind
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26 स‍ितंबर 2021

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यूं तो कुछ ल‍िखने की इच्‍छा मन में सदा से रही क‍िंतु जब भी ल‍िखने की बारी आती है तो मन असमंजस में पड़ जाता क‍ि क्‍या ल‍िखें। यह वेब पृष्‍ठ व‍िचारों की एक गुल्‍लक की तरह है ज‍िसमें मन में बरबस उठने वाले व‍िचारों को सहेजने का प्रयास भर क‍िया गया है। इसमें गम्‍भीर पाण्‍ड‍ित्‍य या राजनीत‍िक औच‍ित्‍य ढूंढना बेमानी है। ट्व‍िटर जैसे सामाज‍िक माध्‍यमों में व‍िचार व्‍यक्‍त करने की एक शब्‍द सीमा होती है और अपने “अनुयाय‍ियों” द्वारा उसे पसंद क‍िए जाने की एक इच्‍छा भी मन में दबी रहती है। पहले मेरा इरादा था क‍ि मैं कुछ साह‍ित्‍यि‍क कृत‍ियों जैसे कव‍िताओं अथवा गद्यांशों का अनुवाद करूं क‍िंतु क‍िसी अनुवादक के ल‍िए भी यह बहुत आसान प्रक‍िया नहीं है। एक उपयुक्‍त रचना खोजना और उसका उपयुक्‍त शब्‍दों में अनुवाद कर पाना व‍िचारने में ज‍ितना सरल लगता है व्‍यवहार में उतना सरल होता नहीं।
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अनुवाद की बात से याद आया क‍ि कुछ लोग अनुवाद में नए शब्‍दों के प्रयोग से ह‍िचकते हैं व‍िशेषकर जब वे अंग्रेजी शब्‍दों के स्‍थानापन्‍न के रूप में प्रयुक्‍त होते हैं तब। ह‍िन्‍दी पर अंग्रेजी की धौंस को “इतनी ह‍िन्‍दी आजकल क‍िसे समझ आती है? या इतनी भी अंग्रेजी नहीं आती क्‍या?” जैसे तर्कों से न्‍यायसंगत ठहराया जाता है। हेय ह‍िन्‍दी, आराध्‍य अंग्रेजी की मानस‍िकता संक्रामक रोग की तरह फैल रही है और बोलने में सरल ह‍िन्‍दी शब्‍दों को भी अंग्रेजी के क्‍ल‍िष्‍ट शब्‍द खदेड़ रहे हैं। अंग्रेजी न केवल ह‍िन्‍दी का हाथ पकड़कर उसकी पहुंची पकड़ चुकी है अप‍ितु ह‍िन्‍दी के सारे ज़ेवर लूटने की फ‍िराक में भी है।
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मेरी श‍िक्षा अंग्रेजी माध्‍यम से ही हुई है और मैं जानता हूं क‍ि अंग्रेजी के शब्‍दों को समझने के ल‍िए भी बहुधा अंग्रेजी से अंग्रेजी के शब्‍दकोश की आवश्‍यकता पड़ ही जाती है। तो मेरा कहना है क‍ि यद‍ि आपको ह‍िन्‍दी का कोई शब्‍द समझ नहीं आया तो आप ह‍िन्‍दी शब्‍दकोश की शरण में जाकर अपनी ज‍िज्ञासा का समाधान कीज‍िए। क‍िंतु कुछ लोगों को तो शुद्ध ह‍िन्‍दी से जैसे बदहजमी होने लगती है। शुद्ध ह‍िन्‍दी बोलते हुए उनकी जीभ लहुलुहान हो जाती है। ऐसे लोगों के ल‍ि‍ए मेरे जेहन में एक ही बात आती है क‍ि कुत्‍ते को घी हजम नहीं होता। जो लोग भाषा की उर्वरता से पर‍िच‍ित हैं, उसके सौंदर्य को समझते हैं, उन्‍हें नए शब्‍दों के प्रयोग से आपत्‍त‍ि नहीं होगी।
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भाषा का अपना व‍िज्ञान होता है और इस ल‍िहाज से भारत सदैव एक समृद्ध और व‍िकस‍ित देश रहा है। मलयालम का थोड़ा ज्ञान होने के पश्‍चात मैंने अनुभव क‍िया क‍ि जब अनुवाद के ल‍िए ह‍िन्‍दी में बगलें झांकने की नौबत आने लगे तो कुछ प्रादेश‍िक भाषाओं से सहायता म‍िल सकती है। अंग्रेजी के शब्‍द “प्रीपेड” के ल‍िए मलयालम में “पूर्वदत्‍त” शब्‍द देखकर मुझे सुखद आश्‍चर्य हुआ था। इसी तरह वायरल होने के ल‍िए तरंगमय होना, “मॉरल पुल‍िस‍” के ल‍िए “सदाचार पोल‍िस” भी हैं। वैसे मुझ जैसा तुच्‍छ प्राणी भी कुछ नए शब्‍द रचने की क्षमता रखता है। यह अलग बात है क‍ि मेरे शब्‍दों को क‍िसी अनुवाद सम‍ित‍ि से मान्‍यता नहीं म‍िली। पर मैं न‍ि‍रर्थक शब्‍द भी नहीं रचता। हाल ही में भारतीय ह‍िन्‍दी चलच‍ित्र उद्योग ज‍िसकी गर‍िमा लोगों को उसे “बॉलीवुड” संबोधि‍त करने में महसूस होती है उसके एक अभ‍िनेता ने “जेटलेग” का ह‍िन्‍दी अनुवाद पूछा। मैंने दो-तीन शब्‍द सुझा द‍िए जैसे व‍िमानश्रान्‍त‍ि, व‍िमानक्‍लान्‍त‍ि, उड़ानक्‍लांत‍ि । यही शब्‍द अम‍िताभ बच्‍चन ने सुझाए होते तो देशभर में उनकी जयजयकार होने लगती। मैं ठहरा अदना प्राणी। जंगल में मोर नाचा क‍िसने देखा ? वैसे वायरल होने के ल‍िए मलयालम शब्‍द से प्रेर‍ित होकर मैंने भी एक शब्‍द रचा है वह है वेगव्‍याप्‍त होना। कोई और करे न करे मैं तो इसे प्रयोग करूंगा ही। संस्‍कृत में एक कहावत है क‍ि एक शब्‍द रचकर पुत्रोत्‍पत्‍त‍ि जैसा आनंद प्राप्‍त होता है।
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मेरा सुझाव है क‍ि यद‍ि लोगों को लगता है क‍ि क‍िसी शब्‍द का ह‍िन्‍दी अनुवाद पाठकों को समझ नहीं आएगा तो वे कोष्‍ठक में उसके ल‍िए प्रचलि‍त अंग्रेजी शब्‍द को ल‍िख सकते हैं। इसमें जरा सी मेहनत और लगेगी क‍िंतु अपनी भाषा के ल‍िए इतने उत्‍तरदाय‍ित्‍व का न‍िर्वाह आप कर सकते हैं। जैसे “आर्गेन‍िक” शब्‍द के ल‍िए एक बार मैंने “सेन्‍द्र‍िय” शब्‍द पढ़ा था। यद‍ि यह शब्‍द कहीं ल‍िखा ही नहीं गया होता तो क्‍या मैं इसे जान पाता। भाषा की शुद्धता से प्रेम करने वाले ऐसे अल्‍पसंख्‍यक होते हैं ज‍िन्‍हें सहानुभूत‍ि नहीं म‍ि‍लती।
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जैसे जैसे भारत में अंग्रेजी श‍िक्षा लोकप्र‍िय होती जा रही है वैसे वैसे लोग अपनी बोलचाल में अध‍िक से अध‍िक अंग्रेजी का प्रयोग करने लगे हैं। ह‍िन्‍दी समाचार चैनल व समाचार पत्र अब मेट्रो ह‍िन्‍दी का प्रयोग करने लगे हैं। ह‍िन्‍दी की धारदार, मुहावरेदार, काव्‍यमयी साह‍ित्‍य‍िक भाषा अब अध‍िक पढ़ने सुनने में नहीं आती।
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अंग्रेजी का सही “प्रनन्‍स‍िएशन” बहुत आवश्‍यक है। इसल‍िए अंग्रेजी शब्‍दों का सही उच्‍चारण स‍िखाने की ज‍िम्‍मेदारी भी अब ह‍िन्‍दी के सर आन पड़ी है। ह‍िन्‍दी की यह दशा उस अबला सी जान पड़ती है ज‍िसे पत‍ि के घर ट‍िके रहने के ल‍िए अपनी नई सौतन की सेवा भी करनी पड़ती है। कुछ लोग जो प्रदूषण के बजाय पोल्‍यूशन का प्रयोग करते थे वे अब उसे पॅल्यूशन कहने लगे हैं। बीबीसी से जुड़े एक महानुभाव ने अपने ह‍िन्‍दी लेख में ब्र‍िटेन को ब्रिटन ल‍िखा और स्‍पष्‍ट भी क‍िया क‍ि यही सही उच्‍चारण है। ब्रिट‍िश, रश‍ियन, इटैल‍ियन, चाईनीज़, और इंड‍ियन को मैं तो ह‍िन्‍दी में क्रमश: ब्र‍ितानी, रूसी, इतालवी, चीनी और ह‍िन्‍दुस्‍तानी ही ल‍िखा जाना पसंद करूंगा। ह‍िन्‍दी लेख में अंग्रेजी शब्‍दों को उनके ही लहजे (accent) में ल‍िखे जाने की गरज तो हम भारतवास‍ियों को नहीं है न।
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हमारे अपने ज्ञान की सीमा भी क‍िसी भाषा के ल‍िए हमारे दृष्‍ट‍िकोण को संकीर्ण कर देती है। जब मैंने जापानी भाषा सीखी तो मैंने जाना क‍ि जापानी भाषा में अंग्रेजी या दूसरी भाषा से आए शब्दों को अलग ल‍िप‍ि काताकाना में ल‍िखा जाता है। जापानी भाषा ने अंग्रेजी शब्‍दों को ज्‍यों का त्‍यों नहीं अपनाया। पार्टी के ल‍िए पाती, केक के ल‍िए केकु, एयरकंडीशनर के ल‍िए एकोन, कम्‍प्‍यूटर के ल‍िए पोसोकोन आद‍ि कई शब्‍द हैं जो अंग्रेजी होते हुए भी जापानी लहजे में ही प्रचलि‍त हैं। इन शब्‍दों को न‍िरस्‍त करके सही उच्‍चारण वाले शब्‍दों को स्‍थाप‍ित करने का प्रयास नहीं क‍िया गया। अंग्रेजी अपना स्‍वरूप खोकर जापानी भाषा में समाह‍ित हुई है। ल‍ेकिन हम भारतीयों पर अंग्रेजी शासन का गहरा प्रभाव पड़ा है। क‍िसी ने अंग्रेजी का गलत उच्‍चारण क‍िया नहीं क‍ि कोई ज्ञानी उसे दुरस्‍त करने के ल‍िए लालाय‍ित हो उठता है। इस धृष्‍टता को करने वालों में मैं भी शाम‍िल हूं क‍िंतु यह मेरे “जागरणकाल” से पहले क‍ी बात है।
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ह‍िन्‍दी में बोलना या न बोलना क‍िसी की न‍िजी इच्‍छा हो सकती है क‍िंतु अनुवादक का एक भाषायी सरोकार होता है – उस भाषा का पोषण करना जो उसकी मातृभाषा है। इसके ल‍िए उसके पास अवसर और साधन दोनों होते हैं इसल‍िए अपनी भाषा पर लगी दूसरी भाषा की काई को हटाते रहना चाह‍िए। आपका शुद्ध हि‍न्‍दी प्रेम भले ही दूसरों को उपहासपूर्ण व‍िस्‍मय से भर दे आपको अपनी भाषा पर गर्व करते रहना चाह‍िए।
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उत्‍तरल‍िप‍ि (Post script): इतना व‍िस्‍तृत लेख ल‍िख पाना आज इसल‍िए संभव हो पाया क्‍योंक‍ि आज सुबह से ही अंतर्जाल सेवा बाध‍ित है। कई द‍िनों के बाद आज सप्‍ताहांत में ढेर सारा समय म‍िल गया नहीं तो द‍िनभर आखें स्‍मार्टफोन से ही च‍िपकी रहती हैं। दरस से दूखण लागे नैन। द‍िमाग अंतर्जाल की मायावी दुन‍िया में ही रमा रहता है। इधर आपने स्‍मार्टफोन पर अपनी उंगली फ‍िराई नहीं उधर एक अदृश्‍य सम्‍मोहन आपको जकड़ लेता है। फोन नि‍हारते न‍िहारते समय कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता है। मनोरंजन की तलब ऐसी क‍ि अवकाश में भी रचनात्‍मक कार्यों के ल‍िए अवकाश नहीं म‍िलता क्‍योंक‍ि उसके ल‍िए भी एक शांत और एकाग्र च‍ित्‍त चाह‍िए। अस्‍तु, इस व‍ि‍षय पर एक चर्चा अलग से फ‍िर कभी…..

अनुवादक

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