रुक्मिणी! रुक्मिणी! ऐन्‍द्रिय प्रेम में निमग्‍न नवोढ़ा

Ajay Singh Rawat/ June 15, 2025
रोजा

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भारतीय रैपर अर्थात् क्षिप्रगायक बाबा सहगल ने रोजा फिल्‍म का गाना रुक्मिणी! रुक्मिणी! गाया था। हाल ही में अपने एक साक्षात्‍कार में उन्‍होंने इस गीत के बोलों को लेकर अपनी पहली प्रतिक्रिया बताई। गाने के बोल सुनकर उन्‍होंने कहा, “कितने वाहियात लिरिक्‍स हैं यार, किसने लिखा है ये?” इसके साथ ही उन्‍होंने अनुवाद की उस बाधा का भी उल्‍लेख किया जिसके चलते एक भाषा का गीत दूसरी भाषा में अनूदित होकर अपना स्‍तर गवां देता है। हालांकि सदैव ऐसा नहीं होता है। किंतु जब कभी ऐसा होता है तो इसमें सांस्‍कृतिक परिवेश की भिन्‍नता और अनुवाद में शब्‍दों के चयन का साझा दोष माना जा सकता है।
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जहां तक रुक्मिणी! रुक्मिणी! गीत का प्रश्‍न है, यह गाना रोजा फिल्‍म के बाकी गानों से काफी अलग और हल्‍का फुल्‍का है। नवदम्‍पति की प्रणयकेलि को लेकर उनके परिचितों का शरारत भरा कौतुहल ही इसका प्रतिपाद्य है। गलितयौवना वृद्धाएं अपनी स्‍मृतियों में संजोए इस अनूठे अनुभव को जीते हुए नृत्‍य कर रही हैं। तमिळ में इस गीत को वैरमुत्तु ने लिखा था और हिन्‍दी में इसे अनूदित किया था पी.के मिश्रा ने। पी.के मिश्रा हिन्‍दी और तमिळ दोनों के अच्‍छे जानकार थे। वे थे तो राजस्‍थानी किंतु उनका अधिकतर जीवन चेन्‍नै में गुजरा। पी.के मिश्रा का अनुवाद कौशल रोजा फिल्‍मों के दूसरे गीतों में बखूबी दिखाई दिया। दिल है छोटा सा, छोटी सी आशा, ये हंसी वादियां, ये खुला आसमां, भारत हमको जान से प्‍यारा है, और रोजा जानेमन, तू ही मेरा दिल, सभी गाने कोमल और सुमधुर हैं। रुक्मिणी! रुक्मिणी! में जो दृश्यरतिकता (voyeurism) का भाव निहित है वह संस्‍कारी लोगों को अखर सकता है।
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स्‍वयं बाबा सहगल की बात की जाए तो उनके गीत हल्‍के फुल्‍के, बचकाने किंतु साफ सुथरे हुआ करते हैं। बालगीत सरीखे उनके गीत ठंडा ठंडा पानी, आलू का परांठा, आजा मेरी गाड़ी में बैठ जा, केला खाओ इत्‍यादि किसी वयस्‍क मनोभाव को उद्दीप्‍त नहीं करते। जबकि वैरमुत्तु अपनी काव्‍यप्रतिभा की आड़ में तमिळ गीतों में ऐन्‍द्रिय वासना के कई बिंब उकेरने की धृष्‍टता करते रहते हैं। हालांकि उनकी शैली गूढ़ और शब्‍द चयन उत्‍कृष्‍ट होता है जिससे श्रोताओं को उन पंक्‍तियों का व्यंग्यार्थ काफी समय बाद जाकर पल्‍ले पड़ता है। मणिरत्‍नम् की ही एक और फिल्‍म दिल से के तमिळ संस्‍करण उयिरे के गीत नेंजिनिले नेंजिनिले (जिया जले, जान जले) की यह पंक्‍तियां वैरमुत्तु की उन्‍मुक्‍त काव्‍यशैली का श्रेष्‍ठ उदाहरण हैं:
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कुंगुमम येन सुडिनेन कोलमुत्ततिल कलैयत्तान
कूरैपट्ट यें उडुत्तिनेन कूडल पोड़ुत्तिल कसंगत्तान
मंगइ कून्‍दल मलर्गल एदर्क कट्टिल मेले नसंगत्तान
दीपंगल अणैप्‍पदे पुदिय पोरुल नान्‍तेडत्तान
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अर्थात्
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मैंने कुमकुम क्यों लगाया? ताकि यह तुम्‍हारे चुंबन से मिट जाए
मैंने रेशमी साड़ी क्यों पहनी- ताकि यह हमारी कामक्रीड़ा के दौरान सिमट जाए
मैंने केशों में फूल क्यों सजाए? ताकि यह मसल जाएं और शैय्या पर सुगंध बिखर जाए
मैंने दीपक क्‍यों बुझा दिए? ताकि मैं नई बातें समझ सकूं।

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प्रस्‍तुत है मूल तमिळ गीत रुक्मिणी रुक्मिणी का शाब्‍दिक अनुवाद जिसमें वैरमुत्तु की ऐन्‍द्रिय बिम्‍बात्‍मकता मुखर हो उठी है:
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रुक्मिणी रुक्मिणी अक्‍कों पक्‍कम एन्‍न सत्तों
कादु रेण्‍डों कूसुदड़ी, कण्‍डपिड़ी एन्‍न सत्तों
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रुक्मिणी रुक्मिणी अगल बगल में कैसा शोर हो रहा है
मेरे कानों से रहा नहीं जाता तुम जरा करो पता
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कट्टीकोण्‍ड आणुम् पेण्‍णुम्, तोट्ट तरुम मुत सत्तों
कट्टिल ओन्‍न विट्ट विट्ट, मेट्ट काट्टुम इन्‍ब चत्तों
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यह आलिंगन में बंधे नवदम्‍पति के चुंबनों की आवाज़ है
यह पलंग के चरमराने की आवाज है
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सेवल ओन्‍न कूवाम, तीराद इन्‍द चत्तों
मुर्गे के बांग देने तक यह आवाज नहीं रुकने वाली

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सिन्‍नचिरु पोण्‍णुक्‍क आसइ रोम्‍बा इरक्‍क
सीनीकुल्‍ल येरम्‍ब माट्टिकिट्ट कणक्‍क
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उस अल्‍हड़ लड़की की बहुत सी हसरते हैं
उसकी दशा शक्‍कर में फंसी चींटी जैसी हो गयी है
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एट्टमेल एट्ट वच्‍च, कट्टिल वरै नेरंग
मुत्तुमणि कोलुसुंग मुतम केट्ट चीणुंग
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धीरे धीरे चलकर पलंग के पास जाओ
चुंबन के लिए मोतियों वाली पायल खनकाओ
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उल्‍ले पू पूक्‍कुद, अडि उच्चि यें वेक्‍कद
आसै पाय पोट्टद, अड अच्‍चों ताल पोट्टद
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भीतर मोगरे के फूल खिल उठते हैं किंतु पसीना क्‍यों आ गया है
इच्‍छा ने बिछौना फैला दिया किंतु लज्‍जा ने उस पर ताला जड़ दिया
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सोन्‍द कोण्‍ड पुरुषन, सुण्‍डविरल पुडिक्‍क
सुण्‍डविरल तोट्टदुम, अन्‍द येड़ों सिलिर्क
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जब साजन कनिष्‍ठा को पकड़ता है
तो उस जगह गुदगुदी होती है
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कामदेवन मण्‍डपत्तिल कच्‍चेरियों नडक्‍क
कण्‍णिमकल वलैयलुम पिन्नणिकल इसैक्‍क
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कामदेव के दरबार में संगीत समारोह हो रहा है
लड़की के कंगन पार्श्‍वसंगीत रच रहे हैं
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मुतम पन्‍दाड़द उयिर मोत्तम तीण्‍डाड़द
सित्तों सूड़ेरद इन्‍द जेन्‍मों इड़ेरद
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चुम्‍बनों का लेनदेन हो रहा है, पूरी जान जाने लगी है
मन तप रहा है, यह जीवन सफल हो गया है
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तमिळ और हिन्‍दी के अतिरिक्‍त रोजा मलयालम,तेलुगु और मराठी में भी डब की गयी थी। इसलिए रुक्‍मिणी,रुक्‍मिणी को मलयालम,तेलुगु और मराठी में भी सुना जा सकता है।
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शब्‍दावली: कूरैपट्ट दुलहन की पारंपरिक साड़ी जो रेशम और कपास से बनाई जाती है, अक्‍कम् पक्‍कम् अगल बगल, सत्तम शोर, कादु कान, कण्‍डपिड़ी खोजो, पता करो, आणुम् पेण्‍णुम् पुरुष और स्‍त्री, आसइ इच्‍छा, येरम्‍ब चींटी, विरल उंगली, सुण्‍डविरल कनिष्‍ठा/छोटी अंगुली मुत्तम् चुम्‍बन, मोत्तम संपूर्ण, इड़म् जगह, इसै संगीत, कच्‍चेरी संगीत समारोह, कट्टिल पलंग, सित्तम चित्त/मन,