मलयाळम में तुंचन का अर्थ सबसे छोटा और एलुदच्चन का अर्थ लेखन का पिता होता है। किंतु तुंचत्त एलुदच्चन मलयाळम के कवियों में महानतम हैं। मलयाळम कालगणना के अंतिम माह कर्किडकम का केरला में विशेष आध्यात्मिक महत्त्व है। मध्य जुलाई से मध्य अगस्त तक की इस अवधि को रामायण माह कहा जाता है। इस अवधि में केरला के मंदिरो और घरों में तुंचत्त एलुदच्चन रचित अध्यात्म रामायणम् किलिपाट्ट का पाठ होता है। किलिपाट्ट का अनुवाद शुकगीत है। इस काव्य शैली के जनक भी तुंचत्त एलुदच्चन ही थे। अध्यात्म रामायण का प्रत्येक अध्याय तोते से रामकथा सुनाने के लिए कहते हुए आरंभ होता है:
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हरमकलक्क अन्बुल्ल तत्ते, वरिकेडो
तमासा सीलम अगतेनम आसु नी
रामदेवन चरितामृतम इन्नियुम
आमोदामूलक्कोण्ड चोल्ल सरसमयी
अर्थात्
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लक्ष्मी के प्रिय तोते
देर करना अच्छी बात नहीं है
रूचि और आनंदपूर्वक
श्रीराम की कथा सुनाओ
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हिंदी भाषियों में जैसी प्रतिष्ठा तुलसीदास की है वैसी ही मलयालियों में तुंचत्त एलुदच्चन की है। अध्यात्म रामायणम किलिपाट्ट के अतिरिक्त उन्होंने भारतम किलिपाट्ट, भागवतम् किलिपाट्ट, उत्तर रामायणम्, चिन्तारत्नम्, देवी माहात्म्यम्, कैवल्य नवनीतम और हरिनाम कीर्तनम् की रचना भी की।
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एलुदच्चन ने अध्यात्म रामायण को लिखने के लिए ग्रंथ आधारित मलयाळम लिपि का अवलम्बन लिया जिसमें इक्यावन वर्ण थे। यद्यपि उस समय केरला की पारम्परिक लिपि वट्टेळत्त (घुमावदार लेखन) थी जिसमें तीस वर्ण थे।
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तुंचत्त रामानुजन एलुदच्चन का जन्म 1495 में केरला के मलप्पुरम जिले के तिरूर तालुका में त्रिकण्डियूर शिव मन्दिर के पास एक स्थान में हुआ था। वे जिस घर में रहते थे वहीं कंजिरम अर्थात् कुचिला के वृक्ष की छाया में विद्यार्थियों को पढ़ाते भी थे। यह वृक्ष अब भी वहीं पर खड़ा है। तीन शताब्दियों तक उपेक्षा झेलने के बाद अंतत: 1961 में इस भवन का जीर्णोद्धार हुआ। सम्प्रति यह भवन तुंचन परम्ब नाम से ख्यात एक सांस्कृतिक केन्द्र है जहां प्रतिवर्ष फरवरी माह के प्रथम सप्ताह में तुंचन उत्सवम् का आयोजन होता है। इसके अतिरिक्त यह स्थान एलुदिनिरुतु अर्थात् विद्यारम्भ संस्कार समारोह के आयोजन लिए भी लोकप्रिय है। प्रतिवर्ष विजयदशमी के महीने में पूरे केरला से सैकड़ों लोग अपने बच्चों को लेकर तुंचन परम्ब आते हैं। गुरु सोने की मुद्रिका से बच्चे की जिह्वा पर पहला अक्षर उकेरता है और फिर उसकी तर्जनी पकड़कर चावल से भरी थाली पर एक पूरी पंक्ति लिखवाता है। समारोह पूर्ण होने पर बच्चे पान के पत्ते पर रखकर गुरु को दक्षिणा देते हैं।
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1993 में केरला साहित्य अकादमी ने साहित्य के सर्वोच्च पुरस्कार के रूप में एलुदच्चन पुरस्कार देना प्रारंभ किया। तकड़ी शिवशंकर पिल्लै, ओ एन वी कुरुप, एम टी वासुदेवन नायर, सुगताकुमारी, सेतु आदि इस पुरस्कार को प्राप्त कर चुके हैं।
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