मीनाक्षी सुंदरेश्‍वर: द्रव‍िड़ युगल का दूरस्‍थ दाम्‍पत्‍य

Ajay Singh Rawat/ November 8, 2021
Meenakshi Sundereshwar

अंतर्जाल (इंटरनेट) का एक सुंदर योगदान है पारगामी प्रान्‍तीयता। व‍िव‍िध भाषा और संस्‍कृत‍ि वाले भारत देश में देशवास‍ियों के ल‍िए एक दूसरे के भाषायी और सांस्‍कृत‍िक पर‍िवेश से सुभ‍िज्ञ होना इतना सरल नहीं है ज‍ितना क‍ि हम समझ बैठते हैं। तम‍िळ और ह‍िन्‍दी की आपसी समझ भी ऐसी ही है।
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तम‍िळ स‍िनेमा की पार‍िवार‍िक कथाओं के ह‍िन्‍दी स‍िनेमा में कई पुनन‍िर्माण हुए हैं ज‍िन्‍हें भरपूर लोकप्र‍ियता म‍िली है। सलमान खान के ल‍िए तो दक्ष‍िणभारतीय चलच‍ि‍त्रों का पुनन‍िर्माण बुढ़ापे की लाठी साब‍ित हुआ हैं। ए आर रहमान का संगीत और प्रभुदेवा का नृत्‍य ह‍िन्‍दी दर्शकों को भी खूब भाता है। ह‍िन्‍दी गाय‍िकाओं साधना सरगम और श्रेया घोषाल ने तम‍िळ संगीत को भी अपना सराहनीय योगदान द‍िया है। तम‍िळ चलच‍ित्र उत्‍तरभारतीय छव‍िगृहों में भले ही द‍ेखने को नहीं म‍िलते हों क‍िंतु यूट्यूब और नेटफ्ल‍िक्‍स पर उन्‍हें बडी संख्‍या में ह‍िन्‍दीभाषी दर्शक देखते और सराहते हैं। ह‍िन्‍दी और तमिळ स‍िनेमा के बीच रोटी-बेटी का र‍िश्‍ता भी कायम हो चुका है। स्‍वपनसुंदरी हेमामाल‍िनी और हवाहवाई श्रीदेवी ने ह‍िन्‍दी स‍िनेमा से न केवल जीव‍िकोपार्जन क‍िया अप‍ितु अपने ल‍िए वर भी प्राप्‍त क‍िए।
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मीनाक्षी सुंदरेश्‍वर उत्‍तर-दक्ष‍िण के सांस्‍कृत‍िक आदान-प्रदान की कड़ी में एक नया प्रयोग है: तम‍िळ प्रेमकथा की ह‍िन्‍दी प्रस्‍तुत‍ि के रूप में।
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इस चलच‍ित्र में मीनाक्षी एक समझदार व आत्‍मव‍िश्‍वासी लड़की है ज‍िसका सुंदरेश्‍वर नामक सीधे-सादे लड़के से व्‍यवस्‍था व‍िवाह (अरेंज्‍ड मैर‍िज) होता है। अपनी नई नौकरी के ल‍िए सुंदरेश्‍वर को व‍िवाह के दो द‍िन बाद ही अपनी पत्‍नी से दूर बेंगलुरू में रहकर कुंआरे होने का अभ‍िनय करना पड़ता है। इस पर‍िस्‍थ‍ित‍ि में इस जोड़े की व‍िरह वेदना और अपने दाम्‍पत्‍य को सहेजकर रखने की ललक इस चलच‍ित्र की कथा का आधार है।

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अब व‍िचार करते हैं उन पहलुओं पर ज‍िनसे इस चलच‍ित्र के तम‍िळ पर‍िवेश को व‍िश्‍वसनीय बनाने का प्रयास क‍िया गया है।
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इस चलच‍ित्र का शीर्षक मीनाक्षी-सुंदरेश्‍वर है जो क‍ि इसके नायिका और नायक का नाम भी है। यह पार्वती-श‍िव का पर्याय भी है ज‍िन्‍हें तम‍िळनाड में भरपूर श्रद्धा से पूजा जाता है। इस पर‍िणयकथा की पृष्‍ठभूम‍ि मदुरै की है जहां पार्वती और श‍िव का व‍िवाह हुआ था। इस अवसर पर वहॉं च‍ित्‍तरै त‍िरुव‍िड़ा (च‍ित्रा उत्‍सव) का आयोजन भी होता है जो पूरे एक माह तक चलता है।
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इस चलच‍ित्र का सबसे सशक्‍त पहलु इसका छायांकन है ज‍िसमें मदुरै का सौंदर्य बखूबी द‍िखाया गया है। दादा-पोती का आंगन में बैठे-बैठे हल्‍की बार‍िश में भीग कर तर होना, अपने प्रथम चुंबन के ल‍िए मीनाक्षी का उत्‍कंठ‍ित होनाा, वह छोटी ख‍िड़की ज‍िसके खुलने पर वर्षा का सुंदर दृश्‍य द‍िखता है,पारंपर‍िक उपस्‍कर (फर्नीचर), खुले ऑंगन वाले चेट्ट‍ि्नाड के पारंपर‍िक घर दर्शकों की स्‍मृत‍ि में बने रहते हैं। कैमरे की कोमल दृष्‍ट‍ि रह रहकर मोगरे(मल्‍ल‍िपू) की मालाओं, ज‍िगरठंडा,फ‍िल्‍टर कॉफी और कांजीवरम की रेशमी साड़‍ि‍यों पर फ‍िरती रहती है। उत्‍तर भारतीय दर्शक के ल‍िए यह चलच‍ि‍त्र दक्ष‍िण भारतीय संस्‍कृत‍ि पर बने व्‍यावसाय‍िक व‍िज्ञापन सा प्रतीत होता है।

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इस चलच‍ित्र का संगीत “पन्‍न‍ियारुम पद्म‍िन‍ियुम” से तम‍िळ स‍िनेसंगीत में पदार्पण करने वाले जस्‍ट‍िन प्रभाकरन ने द‍िया है।
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नायक अभ‍िमन्‍यु में युवा और सजीले माधवन की झलक द‍िखना मात्र संयोग नहीं कहा जा सकता। सान्‍या मल्‍होत्रा को भी रजनी रस‍िगन अर्थात रजनीकांत की प्रशंसि‍का द‍िखाया गया है ज‍िसका कमरा रजनीकांत की तस्‍वीरों से सजा रहता हैै।
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जब कोई चलच‍ित्र ह‍िन्‍दी पट्टी से बाहर के पर‍िवेश पर आधार‍ित होता है तो उसे दर्शकों के ल‍िए व‍िश्‍वसनीय बनाने की आवश्‍यकता पड़ती है व‍िशेषकर तम‍िळनाड के संदर्भ में जहाँ स्‍वतंत्रता के बाद से ही ह‍िन्‍दी थोपने के व‍िरुद्ध संघर्ष होता रहा है। ह‍िन्‍दी इस पर‍िवेश की स्‍वाभाव‍िक भाषा नहीं है। ह‍िन्‍दी भाष‍ियों को तम‍िळभाष‍ियों के रूप में द‍िखाने का यह पहला प्रयास नहीं है। इससे पहले भी कुछ ह‍िन्‍दी चलच‍ित्रों में तम‍िळ चर‍ित्र गढे़ गये हैं और उनकी सराहना भी हुई है। “तुम मि‍लो तो सही” में नाना पाटेकर, “शंघाई” में अभय देओल और “हम हैं राही प्‍यार के” में जूही ने भी अच्‍छे से तम‍िळ बोली है।

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यह चलच‍ित्र बनाया तो ह‍िन्‍दी दर्शकों के ल‍िए ही था क‍िंतु यद‍ि इसे तम‍िळ दर्शकों की सराहना भी म‍िल जाती तो इस चलच‍ित्र से जुड़े लोगों के ल‍िए यह एक बख्‍शीश साब‍ित होती। क‍िंतु दुर्भाग्य से ऐसा हुआ नहीं और स्‍थ‍ित‍ि होम करते हाथ जलने जैसी हो गयी। अपनी संस्‍कृत‍ि के प्रहरी तम‍िळ दर्शक इस चलच‍ित्र में अज्ञानतावश हुई भूलों से रूष्‍ट हो गये। यह गलत‍ियॉं ऐसी हैं ज‍िनसे एक आम उत्‍तरभारतीय भी पर‍िच‍ित हो जाए तो तम‍िळ संस्‍कृत‍ि का उसका सामान्‍य ज्ञान जरा बेहतर हो जाएगा। तो एक द्ष्‍ट‍ि उन पहलुओं पर भी डालते हैं जो तम‍िळ दर्शकों को नागवार गुज़रे।
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चलच‍ित्र की पृष्‍ठभूम‍ि मदुरै की है जो क‍ि तम‍िळभाषा की जन्‍मस्‍थली भी है। इस नगर के लोगों को धाराप्रवाह ह‍िन्‍दी और नाममात्र की तम‍िळ (इल्‍ल, सेरी, अपड़‍िया, अन्‍ना, अप्‍पा,अम्‍मा) आद‍ि बोलते द‍िखाय गया है। मीनाक्षी नाम का उच्‍चारण सर्वत्र “म‍िनक्ष‍ि” क‍िया गया है जो क‍ि त्रुट‍िपूर्ण है। अभ‍िनेता अभ‍िमन्‍यु दासानी का लहजा मुम्‍बइया है। “मन केसर केसर” में गायक शाश्‍वत स‍िंह कनमण‍ि का सही उच्‍चारण नहीं कर पाए हैं। वेष्‍ट‍ि को लुंगी कहना सांस्‍कृत‍िक अश‍िष्‍टता है। वेष्‍ट‍ि जो क‍ि श्‍वेत ही होती है एक औपचार‍िक पहनावा है जबक‍ि लुंगी रंगीन और अनौपचार‍िक होती है।

तम‍िळ पत्र “व‍िकटन” में प्रकाश‍ित समीक्षा मेंं कहा गयाा है क‍ि ‘மீனாட்சி சுந்தரேஷவர்’ எனும் பெயரைத் தவிர படத்தில் எதுவும் தமிழ் இல்லை (मीनाक्षी सुन्‍दरेश्‍वर एनुम पेयरैत्‍तव‍िर पड़त्‍ति‍ल एदुवुम तम‍िळ इल्‍लै)। अर्थात् मीनाक्षी सुंदरेश्‍वर इस नाम के अत‍िर‍िक्‍त चलच‍ित्र में कुछ भी तम‍िळ नहीं है।
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तम‍िळ स‍िने उद्योग में रजनीकांत के अत‍िर‍िक्‍त भी कई अभ‍िनेता हैं जो बहुत लोकप्र‍िय हैं व‍िशेषकर कमल हासन, अज‍ित, व‍िक्रम, व‍िजय, सूर्या, व‍िजय सेतुपत‍ि आद‍ि। मीनाक्ष‍ी को रजनीकांत की ज‍िस फ‍िल्‍म दरबार का दीवाना बताया गया है वह वास्‍तव में दर्शकों द्वारा ब‍िल्‍कुल नकार दी गयी थी।
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खानपान को लेकर भी कुछ गलत‍ियॉं हुई हैं। एक जगह वड़क्कै बज्‍जी को पड़मपोरी कहा गया है। वड़क्‍कै बज्‍जी कच्‍चे केले से बनती है और पूरे तम‍िळनाड में खाई जाती है। जबक‍ि पड़मपोरी पके केले से बनती है और व‍िशेषरूप से केरल मेंं म‍िलती है। तम‍िळों को शाकाहारी बताया गया है जबक‍ि तम‍िळनाड में मॉंसाहार भी बहुत लोकप्र‍िय है। तम‍िळ अपना दैन‍िक भोजन सदैव तांबे के बर्तनों में नहीं करते। वहां अध‍िकतर सेलम के स्‍टील के बर्तनों का प्रयोग होता है।
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एक दृश्‍य में मीनाक्षी के दादा को एक शुभ अवसर पर शंखनाद करते हुए द‍िखाया गया है जबक‍ि दक्ष‍िण में चेट्ट‍ियार समुदाय ही ऐसे अवसरों पर शंख बजा सकते हैं। चलच‍ित्र में इस पर‍िवार को ब्राह्मण द‍िखाया गया है। व‍िवाह की वेशभूषा भी ब्राह्मणों की नहीं है। माथे पर चंदन नहीं लगाया जाता बल्‍क‍ि त‍िरुनूर/व‍िभूत‍ि लगाई जाती है।
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वैंकटेश्‍वर सुप्रभातम् एक प्रभात सेवा प्रार्थना है जो भगवान को नींद से जगाने की प्रार्थना है। यह आरत‍ियों की तरह कई घरों में एक साथ नहीं गायी जाती।
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तम‍िळ वधुऍं व‍िवाह च‍िन्‍ह के रूप में ताली या त‍िरुमांगल्‍यम पहनती हैं न क‍ि मंगलसूत्र जैसा कि‍ इस चलच‍ित्र में द‍िखाया गया है। ताली एक सुनहरा धागा होता है और मंगलसूत्र की तरह उसमें काले मोती नहीं होते।
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तम‍िळ महीनों के अनुसार कार्त‍िक का महीना पोंगल के पहले आता है जबक‍ि चलच‍ित्र में इसका उल्‍लेख पोंगल के बाद क‍िया गया है।
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इतने छ‍िद्रान्‍वेषण के बाद अनुमान लगाना कठ‍िन नहीं क‍ि तम‍िळ पर ह‍िन्‍दी की प्रणयव‍िजय का यह प्रयास तो व‍िफल रहा क‍िंतु इसने भव‍िष्‍य में बेहतर शोधपूर्ण प्रयास की आशा जरूर जगा दी है।