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25 जनवरी 2024 को इलैयाराजा की पुत्री और तमिळ सिनेगायिका भवतारिणी का निधन हो गया। वह दीर्घकाल से यकृत कर्करोग से ग्रस्त थी। उनके निधन से सम्पूर्ण तमिळ समुदाय शोकनिमग्न हो गया। अपनी एक सुरीली गायिका को असमय खोने के दुख के साथ ही उसके पिता और अपने प्रिय संगीतकार की वेदना ने भी उन्हें झकझोर दिया। इस द्विगुणित दुख की अभिव्यक्ति का माध्यम बना “भारती” चलचित्र का गीत “मयिल पोले पोन्न ओन्न” जिसे वर्ष 2000 में भवतारिणी ने अपने पिता के संगीत निर्देशन में गाया था। इसके लिए भवतारिणी ने सर्वश्रेष्ठ गायिका का राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीता था। अपनी लाडली को चिरविदा देते समय इलैयाराजा ने भी गलदश्रु सिंचित स्वर में इसी गाने की पंक्तियां गुनगुनाई। वर्षों पूर्व इलैयाराजा ने जब इस गीत को सुरों में पिरोकर अपनी बेटी से गवाया होगा तब उन्हें इसका अंदाजा नहीं रहा होगा कि एक दिन इसी गीत को गाकर उन्हें अपनी बेटी को इस संसार से विदा भी करना पड़ेगा। इस अत्यंत भावुक क्षण ने इस गीत को दर्द की एक तासीर से सरोबार कर दिया।
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शैली की कविता “टू अ स्काइलार्क” की पंक्ति “Our sweetest songs are those that tell of saddest thought” से प्रेरित गीतकार शैलेन्द्र के एक गीत के बोल हैं, “है सबसे मधुर वो गीत जिसे हम दर्द के सुर में गाते हैं।“ अब “मयिल पोले पोन्न ओन्न” में भी वह दर्द भरी मिठास समा गयी है।
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मुहम्मद मेता रचित इस तमिळ गीत के हिन्दी अनुवाद से मैंने अपने पाठकों के साथ इलैयाराजा की भावनाओं को साझा करने का प्रयास भर किया है।
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मयिल पोले पोन्न ओन्न
किलि पोले पेच ओन्न
कुयिल पोले पाट्ट ओन्न
केट निन्न मनस पोन इडम तेरियिल्ल
अन्द मयक्कों एनक्कु इन्नु तेलियिल्ल
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मोर जैसी एक लड़की
जिसकी बातें तोते की तरह हैं।
जिसका गाना कोयल की कूक जैसा (सुरीला) है
जिसे सुनकर न जाने मेरा मन कहां चला गया।
मैं इस बेहोशी को अब तक न समझ सका।
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वंडियिल वन्न मयिल नीयुम पोना
सक्करमा एन मनस सुत्तदड़ी
मन्दार मल्ली मरिक्कोलन्द सेनबगमे
मुन मुरिया पूवे एन मुरिचादेनड़ियो
तंग मुगम पाक
दिनम सूरियनुम वरलाम
संग कळत्तुक्के
पिरै चंदिरन तरलाम
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गाड़ी में बैठकर आये मोर तुम्हारे भी चले जाने से
मेरा दिमाग पहिये सा घूम रहा है
मन्दार, चमेली, दवना, चंपा
आदि फूल तुमने क्यों मसल डाले
तुम्हारा सुनहरा मुख देखने के लिए दिन में सूरज भी आ सकता है
शंख जैसी सुडौल गर्दन में अर्धचन्द्र पहनाया जा सकता है
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वेल्ली निला मेगत्तिल वारदप्पोल
मल्लिग पू पंदलूड़ वन्दद यार
सिरु ओलयिल उन निनैप्प एळुदिवेच्चेन
ओरु एळुत अरियाद
कात वन्द एळपदुम एन्न
कुत्त विलक्क ओलिये
सिरु कुट्टी निला ओलिये
मुत्तु चुडर ओलिये
ओरु मुत्तम नी तरुवाया
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बादलों से निकलते रूपहले चंद्रमा की तरह
चमेली के फूलों की गेंद लिए यह कौन आ गयी
मैंने तुम्हारी स्मृति को एक छोटे पत्र पर लिखकर सहेज लिया था
लेकिन अनपढ़ पवन आकर उसे भला क्यों छीनना चाहती है
दीये की मंद ज्योति, चंद्रमा की मंद रोशनी
और मोतियों की आभा में
क्या तुम मुझे एक चुंबन दोगी?
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जिसके संगीत ने दशकों तक तमिळों के मन के संताप को हरा है, उसके संतप्त मन के लिए सांत्वना के शब्द यदि कहीं मिल सकते हैं तो वह “सरोज स्मृति” से महाकवि निराला के होने चाहिए:
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छोड़ कर पिता को पृथ्वी पर
तू गई स्वर्ग, क्या यह विचार
“जब पिता करेंगे मार्ग पार
यह, अक्षम अति, तब मैं सक्षम,
तारूँगी कर गह दुस्तर तम?”
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टिप्पणी: इस गीत में प्रकृति से जुड़े कई तमिळ शब्दों का प्रयोग हुआ है जैसे मयिल (मोर), किली (तोता), कुयिल (कोयल), कात (पवन), निला (चंद्रमा), पिरै चन्दिरन (अर्धचंद्र), सूरियन (सूरज), संग (शंख), मन्दार (मन्दार पुष्प), मल्ली (चमेली), मरिक्कोलन्द (दवना/एक सुगंधित घास), सेनबगम (चम्पा), तंग (सोना), वेल्ली (चांदी), मुत्त (मोती), मुत्तम् (चुंबन), ओलै (पत्ती).
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